अन्तःस्थ व्यंजन(Semivowels) |
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अन्तः’ का अर्थ होता है- ‘भीतर’। उच्चारण के समय जो व्यंजन मुँह के भीतर ही रहे उन्हें अन्तःस्थ व्यंजन कहते है। सरल शब्दों में- जिन वर्गो का उच्चारण वर्णमाला के बीच अर्थात (स्वरों और व्यंजनों) के बीच होता हो, वे अंतस्थ: व्यंजन कहलाते है। अन्तः = मध्य/बीच, स्थ = स्थित। इन व्यंजनों का उच्चारण स्वर तथा व्यंजन के मध्य का-सा होता है। उच्चारण के समय जिह्वा मुख के किसी भाग को स्पर्श नहीं करती। ये व्यंजन चार होते है- य, र, ल, व। इनका उच्चारण जीभ, तालु, दाँत और ओठों के परस्पर सटाने से होता है, किन्तु कहीं भी पूर्ण स्पर्श नहीं होता। अतः ये चारों अन्तःस्थ व्यंजन ‘अर्द्धस्वर’ कहलाते हैं। |
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उच्चारण स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण |
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व्यंजनों का उच्चारण करते समय हवा मुख के अलग-अलग भागों से टकराती है। उच्चारण के अंगों के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार है : (i) कंठ्य (गले से) – क, ख, ग, घ, ङ (ii) तालव्य (कठोर तालु से) – च, छ, ज, झ, ञ, य, श (iii) मूर्धन्य (कठोर तालु के अगले भाग से) – ट, ठ, ड, ढ, ण, ड़, ढ़, ष (iv) दंत्य (दाँतों से) – त, थ, द, ध, न (v) वर्त्सय (दाँतों के मूल से) – स, ज, र, ल (vi) ओष्ठय (दोनों होंठों से) – प, फ, ब, भ, म vii) दंतौष्ठय (निचले होंठ व ऊपरी दाँतों से) – व, फ (viii) स्वर यंत्र से – ह |
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श्वास (प्राण-वायु) की मात्रा के आधार पर वर्ण-भेद |
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प्राण का अर्थ है वायु। व्यंजनों का उच्चारण करते समय बाहर आने वाली श्वास-वायु की मात्रा के आधार पर व्यंजनों के दो भेद हैं- (1) अल्पप्राण (2) महाप्राण (1) अल्पप्राण व्यंजन:- जिन वर्णों के उच्चारण में वायु की सामान्य मात्रा रहती है और हकार जैसी ध्वनि बहुत ही कम होती है। वे अल्पप्राण कहलाते हैं। सरल शब्दों में- जिन व्यंजनों के उच्चारण से मुख से कम हवा निकलती है, वे अल्प प्राण कहलाते हैं प्रत्येक वर्ग का पहला, तीसरा और पाँचवाँ वर्ण अल्पप्राण व्यंजन हैं। जैसे- क, ग, ङ; ज, ञ; ट, ड, ण; त, द, न; प, ब, म,। अन्तःस्थ (य, र, ल, व ) भी अल्पप्राण ही हैं। (2) महाप्राण व्यंजन :-जिन व्यंजनों के उच्चारण में श्वास-वायु अल्पप्राण की तुलना में कुछ अधिक निकलती है और ‘ह’ जैसी ध्वनि होती है, उन्हें महाप्राण कहते हैं। सरल शब्दों में- जिन व्यंजनों के उच्चारण में अधिक वायु मुख से निकलती है, वे महाप्राण कहलाते हैं। प्रत्येक वर्ग का दूसरा और चौथा वर्ण तथा समस्त ऊष्म वर्ण महाप्राण हैं। जैसे- ख, घ; छ, झ; ठ, ढ; थ, ध; फ, भ और श, ष, स, ह। संक्षेप में अल्पप्राण वर्णों की अपेक्षा महाप्राणों में प्राणवायु का उपयोग अधिक श्रमपूर्वक करना पड़ता हैं। |
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घोष और अघोष व्यंजन |
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घोष का अर्थ है नाद या गूँज। वर्णों के उच्चारण में होने वाली ध्वनि की गूँज के आधार पर वर्णों के दो भेद हैं- घोष और अघोष। (1) घोष या सघोष व्यंजन:- नाद की दृष्टि से जिन व्यंजनवर्णों के उच्चारण में स्वर-तन्त्रियाँ झंकृत होती हैं, वे घोष कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में- जिन वर्णों के उच्चारण में गले के कम्पन से गूँज-सी होती है, उन्हें घोष या सघोष कहते हैं। जैसे- ग, घ, ड़, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व (वर्गों के अंतिम तीन वर्ण और अंतस्थ व्यंजन) तथा सभी स्वर घोष हैं। घोष ध्वनियों के उच्चारण में स्वर-तंत्रियाँ आपस में मिल जाती हैं और वायु धक्का देते बाहर निकलती है। फलतः झंकृति पैदा होती है। (2) अघोष व्यंजन:- नाद की दृष्टि से जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण में स्वर-तन्त्रियाँ झंकृत नहीं होती हैं, वे अघोष कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में- जिन वर्णों के उच्चारण में गले में कम्पन नहीं होता, उन्हें अघोष कहते हैं। जैसे- क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ (वर्गों के पहले दो वर्ण) तथा श, ष, स अघोष हैं। अघोष वर्णों के उच्चारण में स्वर-तंत्रियाँ परस्पर नहीं मिलतीं। फलतः, वायु, आसानी से निकल जाती है। |
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संयुक्त व्यंजन |
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जो व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजनों के मेल से बनते हैं, वे संयुक्त व्यंजन कहलाते हैं। दूसरे शब्दों में- वर्णमाला में ऐसे व्यंजन वर्ण जो दो अक्षरों को मिलाकर बनाए गए है, वो संयुक्त व्यंजन कहलाते है। ये संख्या में चार हैं : क्ष = क् + ष + अ = क्ष (रक्षक, भक्षक, क्षोभ, क्षय) त्र = त् + र् + अ = त्र (पत्रिका, त्राण, सर्वत्र, त्रिकोण) ज्ञ = ज् + ञ + अ = ज्ञ (सर्वज्ञ, ज्ञाता, विज्ञान, विज्ञापन) श्र = श् + र् + अ = श्र (श्रीमती, श्रम, परिश्रम, श्रवण) कुछ लोग ज् + ञ = ज्ञ का उच्चारण ‘ग्य’ करते हैं। संयुक्त व्यंजन में पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है। |
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द्वित्व व्यंजन |
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द्वित्व व्यंजन:- जब शब्द में एक ही वर्ण दो बार मिलकर प्रयुक्त हो तब उसे द्वित्व व्यंजन कहते हैं। जैसे- बिल्ली में ‘ल’ और पक्का में ‘क’ का द्वित्व प्रयोग है। द्वित्व व्यंजन में भी पहला व्यंजन स्वर रहित तथा दूसरा व्यंजन स्वर सहित होता है। |
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संयुक्ताक्षर |
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संयुक्ताक्षर:- जब एक स्वर रहित व्यंजन अन्य स्वर सहित व्यंजन से मिलता है, तब वह संयुक्ताक्षर कहलाता हैं। जैसे- क् + त = क्त = संयुक्त स् + थ = स्थ = स्थान स् + व = स्व = स्वाद द् + ध = द्ध = शुद्ध यहाँ दो अलग-अलग व्यंजन मिलकर कोई नया व्यंजन नहीं बनाते। |
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वर्णों का उच्चारण-स्थान |
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कोई भी वर्ण मुँह के भित्र-भित्र भागों से बोला जाता हैं। इन्हें उच्चारण-स्थान कहते हैं। दूसरे शब्दों में- भिन्न-भिन्न वर्णों का उच्चारण करते समय मुख के जिस भाग पर विशेष बल पड़ता है, उसे उस वर्ण का उच्चारण-स्थान कहते हैं। जैसे- च्, छ्, ज् के उच्चारण में तालु पर अधिक बल पड़ता है, अतः ये वर्ण तालव्य कहलाते हैं। मुख के छह भाग हैं- कण्ठ, तालु, मूर्द्धा, दाँत, ओठ और नाक। हिन्दी के सभी वर्ण इन्हीं से अनुशासित और उच्चरित होते हैं। चूँकि उच्चारणस्थान भित्र हैं, इसलिए वर्णों की निम्नलिखित श्रेणियाँ बन गई हैं- कण्ठ्य- कण्ठ और निचली जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- अ, आ, कवर्ग, ह और विसर्ग। तालव्य- तालु और जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- इ, ई, चवर्ग, य और श। मूर्द्धन्य- मूर्द्धा और जीभ के स्पर्शवाले वर्ण- टवर्ग, र, ष। दन्त्य- दाँत और जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- तवर्ग, ल, स। ओष्ठ्य- दोनों ओठों के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- उ, ऊ, पवर्ग। कण्ठतालव्य- कण्ठ और तालु में जीभ के स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- ए, ऐ। कण्ठोष्ठय- कण्ठ द्वारा जीभ और ओठों के कुछ स्पर्श से बोले जानेवाले वर्ण- ओ और औ। दन्तोष्ठय- दाँत से जीभ और ओठों के कुछ योग से बोला जानेवाला वर्ण- व। नासिक्य- ङ, ञ, ण, न, म। अलीजिह्न- ह। |
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प्रयत्न |
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वर्णों का उच्चारण करते समय विभिन्न उच्चारण-अव्यय किस स्थिति और गति में हैं, इसका अध्ययन ‘प्रयत्न’ के अंतर्गत किया जाता है। प्रयत्न के आधार पर हिन्दी वर्णों का वर्गीकरण प्रायः निम्नलिखित रूप में किया गया है। (अ ) स्वर:- (i) जिह्रा का कौन-सा अंश उच्चारण में उठता है, इस आधार पर स्वरों के भेद निम्नलिखित हैं- अग्र : इ, ई, ए, ऐ मध्य : अ पश्च : आ, उ, ऊ, ओ, औ (ii) होठों की स्थिति गोलाकार होती है या नहीं, इस आधार पर स्वरों के भेद निम्नलिखित हैं- वृत्तमुखी : उ, ऊ, ओ, औ अवृत्तमुखी : अ, आ, इ, ई, ए, ऐ ( आ ) व्यंजन:- प्रयत्न के आधार पर हिन्दी व्यंजनों का वर्गीकरण इस प्रकार है- (i) स्पर्शी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में फेफ़ड़ों से आई वायु किसी अवयव को स्पर्श करके निकले, उन्हें स्पर्शी कहते हैं। क, ख, ग, घ, ट, ठ, ड, ढ, त, थ, द, ध, प, फ, ब, भ स्पर्शी व्यंजन हैं। (ii) संघर्षी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु संघर्षपूर्वक निकले, उन्हें संघर्षी कहते हैं। श, ष, स, ह आदि व्यंजन संघर्षी हैं। (iii) स्पर्श-संघर्षी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में स्पर्श का समय अपेक्षाकृत अधिक होता है और उच्चारण के बाद वाला भाग संघर्षी हो जाता है, वे स्पर्श संघर्षी कहलाते हैं। च, छ, ज, झ स्पर्श-संघर्षी व्यंजन हैं। (iv) नासिक्य : जिन व्यंजनों के उच्चारण में वायु मुख्यतः नाक से निकले, उन्हें नासिक्य कहते हैं। ङ, ञ, ण, न, म व्यंजन नासिक्य हैं। (v) पार्श्विक : जिन व्यंजनों के उच्चारण में जीभ तालु को छुए किन्तु पार्श्व (बगल) में से हवा निकल जाए, उन्हें पार्श्विक व्यंजन कहते हैं। दूसरे शब्दों में- जिनके उच्चारण में जिह्वा का अगला भाग मसूड़े को छूता है और वायु पाश्र्व आस पास से निकल जाती है, वे पार्श्विक कहलाते हैं। हिन्दी में केवल ‘ल’ व्यंजन पार्श्विक है। (vi) प्रकंपी : जिन व्यंजनों के उच्चारण में जिह्वा को दो तीन बार कंपन करना पड़ता है, वे प्रकंपी कहलाते हैं। |
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अक्षर |
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सामान्यतः ‘अक्षर’ शब्द का प्रयोग स्वरों और व्यंजनों के लिपि-चिह्नों के लिए होता है। जैसे- उसके अक्षर बहुत सुन्दर हैं। व्याकरण में ध्वनि की उस छोटी-से-छोटी इकाई को अक्षर कहते हैं जिसका उच्चारण एक झटके से होता है। अक्षर में व्यंजन एकाधिक हो सकते हैं किन्तु स्वर प्रायः एक ही होता है। हिन्दी में एक अक्षर वाले शब्द भी हैं और अनेक अक्षरों वाले भी। उदाहरण देखिए- आ, खा, जो, तो (एक अक्षर वाले शब्द) मित्र, गति, काला, मान (दो अक्षरों वाले शब्द) कविता, बिजली, कमान (तीन अक्षरों वाले शब्द) अजगर, पकवान, समवेत (चार अक्षरों वाले शब्द) मनमोहन, जगमगाना (पाँच अक्षरों वाले शब्द) छः या उससे अधिक अक्षरों वाले शब्दों का प्रयोग बहुत कम होता है। |
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बलाघात |
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शब्द का उच्चारण करते समय किसी एक अक्षर पर दूसरे अक्षरों की तुलना में कुछ अधिक बल दिया जाता है। जैसे- ‘जगत’ में ज और त की तुलना में ‘ग’ पर अधिक बल है। इसी प्रकार ‘समान’ में ‘मा’ पर अधिक बल है। इसे बलाघात कहा जाता है। बलाघात दो प्रकार का होता है– (1) शब्द बलाघात (2) वाक्य बलाघात। (1) शब्द बलाघात– प्रत्येक शब्द का उच्चारण करते समय किसी एक अक्षर पर अधिक बल दिया जाता है। जैसे– गिरा मेँ ‘रा’ पर। हिन्दी भाषा में किसी भी अक्षर पर यदि बल दिया जाए तो इससे अर्थ भेद नहीं होता तथा अर्थ अपने मूल रूप जैसा बना रहता है। (2) वाक्य बलाघात– हिन्दी में वाक्य बलाघात सार्थक है। एक ही वाक्य मेँ शब्द विशेष पर बल देने से अर्थ में परिवर्तन आ जाता है। जिस शब्द पर बल दिया जाता है वह शब्द विशेषण शब्दों के समान दूसरों का निवारण करता है। जैसे– ‘रोहित ने बाजार से आकर खाना खाया। |
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निसकर्ष |
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जब हम किसी ध्वनि का उच्चारण करते हैं तो उसका एक ‘सुर’ होता है। जब एकाधिक ध्वनियों से बने शब्द, वाक्यांश या वाक्य का प्रयोग करते हैं तो सुर के उतार-चढ़ाव से एक सुरलहर बन जाती है। इसे अनुतान कहते हैं। एक ही शब्द को विभिन्न अनुतानों में उच्चरित करने से उसका अर्थ बदल जाता है। उदाहरण के लिए ‘सुनो’ शब्द लें। विभिन्न अनुतानों में इसका अर्थ अलग-अलग होगा। |
ण-वायु (श्वास) की मात्रा के आधार पर वर्णों का भेद किया जाता है —
A) उच्च, मध्यम, निम्न
B) अल्पप्राण और महाप्राण
C) स्वर और व्यंजन
D) कंठ्य, तालव्य, मूर्धन्य
✅ सही उत्तर:
B) अल्पप्राण और महाप्राण