ईरान बनाम इज़राइल 2025: संघर्ष की शुरुआत और संभावित परिणाम”

फारस की खाड़ी के उत्तर पर ईरान है तो दक्षिण पर यूएई सऊदी अरब जैसे ये गल्फ कंट्रीज हैं। आप और जब थोड़ा आगे चलते हैं तो अंत में मेडिटेरेनियन सी पाते हैं और मेडिटेटरेनियन सी के किनारे बसा हुआ यह देश इजराइल पाते हैं। इजराइल यहां बसा है। ईरान यहां बसा है और दोनों में दुश्मनी इतनी कि ईरान ने इजराइल के खिलाफ लेबनान को हथियार में इस्तेमाल किया। फिलिस्तीन का एक छोटा हिस्सा गाजा पट्टी को इस्तेमाल किया। यमन का इस्तेमाल किया। जहां तहां ईरान ने इजराइल के खिलाफ पूरी तरह मोमेंटम बनाए रखा है।

ईरान बनाम इज़राइल 2025: संघर्ष की शुरुआत और संभावित परिणाम"

ईरान यहां बसा है

पहुंचते हैं। फारस की खाड़ी के उत्तर पर ईरान है तो दक्षिण पर यूएई सऊदी अरब जैसे ये गल्फ कंट्रीज हैं। आप और जब थोड़ा आगे चलते हैं तो अंत में मेडिटेरेनियन सी पाते हैं और मेडिटेटरेनियन सी के किनारे बसा हुआ यह देश इजराइल पाते हैं। इजराइल यहां बसा है। ईरान यहां बसा है और दोनों में दुश्मनी इतनी कि ईरान ने इजराइल के खिलाफ लेबनान को हथियार में इस्तेमाल किया। फिलिस्तीन का एक छोटा हिस्सा गाजा पट्टी को इस्तेमाल किया। यमन का इस्तेमाल किया। जहां तहां ईरान ने इजराइल के खिलाफ पूरी तरह मोमेंटम बनाए रखा है। इसीलिए आज ये
प्रश्न बहुत कीमती हो जाता है कि आफ्टर ऑल ईरान को इतनी चिढ़ क्या है इजराइल से? तो आइए उस छिड़ को थोड़ा समझना शुरुआत करते हैं। साथियों इस पूरी कहानी को समझने के लिए आपको थोड़ा इतिहास के झरोके में झांकना पड़ेगा और उस इतिहास के झरोखों में तीन समझौतों की चर्चा करनी होगी। मैं आपको इतिहास में लेकर चलूंगा। लेकिन उससे पहले आपको थोड़ा सा विश्व युद्ध का काल बता देता हूं। साथियों समय था 1914 से 18 के बीच का जब दुनिया प्रथम विश्व युद्ध के अंदर इनवॉल्व थी
सब एक साथ होकर युद्ध लड़ रहे थे। किसके खिलाफ लड़ रहे थे? यह जानना बहुत जरूरी है। युद्ध लड़ा जा रहा था। जर्मनी, हंगरी, ऑस्ट्रिया और ऑटोमन एंपायर के खिलाफ। जर्मनी नाम याद रखिएगा। इंपॉर्टेंट है। वैसे ही ऑटोमन एंपायर भी याद रखिएगा। बड़ा इंपॉर्टेंट है। ऑटोमन एंपायर को उस समय तुर्क साम्राज्य के नाम से जाना जाता था। आज का तुर्की उसका शायद 1/10वां हिस्सा भी नहीं है। वो बहुत बड़ा साम्राज्य हुआ करता था। अफ्रीका, एशिया, यूरोप तक विस्तृत था। ऐसा ऑटोमन एंपायर जिसका इतिहास लगभग 600 साल से पुराना हो।

फ्रांस का बड़ा महत्व है।

ऑटोमन, जर्मंस, हंगरी, ये ऑस्ट्रिया, बुल्गारिया ये सब एक साथ खड़े हैं और इटली, फ्रांस, ब्रिटेन और रूस एक साथ खड़े हैं और अमेरिका भी उन्हीं के साथ खड़ा है। इन दोनों के बीच में युद्ध हुआ 1914 से 18 के बीच में जिसे प्रथम विश्व युद्ध के नाम से जाना जाता है। इस प्रथम विश्व युद्ध के अंदर ब्रिटेन और फ्रांस का बड़ा महत्व है। इसे जरूर ध्यान रखिएगा। ब्रिटेन और फ्रांस इस युद्ध में वो धड़ा बनकर बैठे थे जिस धड़े को दुनिया पर राज करने की आदत थी और राज करने में ब्रिटिशर्स के बारे में कहा जाता था
इतने शक्ति संपन्न थे कि दुनिया में सूरज जहां एक और उगता था वहां से सूरज जहां छुपता था वहां तक इनका शासन होता था। ऐसे में ब्रिटिशर्स ने राज करने की एक अद्भुत कला सीखी हुई थी। उसका नाम था फूट डालो राज करो नीति। फूट डालो राज करो में ये अक्सर यह तरीका ढूंढ ही लेते थे कि किस देश की कहां नब्ज दबाई जा सकती है। किस तरह से समझौते किए जा सकते हैं और किस तरह से किसी देश के भीतर ही संघर्ष पैदा किया जा सकता है। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ही तीन ऐसे ही समझौते हुए जिसने प्रथम विश्व युद्ध के परिणाम बदल दिए।

ब्रिटिश एंपायर

समझौतों में से एक का नाम है स पिकॉट समझौता। दूसरे का नाम है ब्रिटिश एंपायर और हैशमाइट परिवार के बीच समझौता और तीसरा समझौता है बॉल फोर एग्रीमेंट। आज का ये सेशन बस इसलिए जरूरी है ताकि आप इस कॉन्टेक्स्ट को जो इन दिनों संघर्ष चल रहा है उसे समझ पाएं। अब हम इसे भी आगे बढ़ेंगे। उससे पहले थोड़ा सा और आपको ब्रिटेन और फ्रांस के बीच की कहानी बता देते हैं। देखिए ये जो ब्रिटेन और फ्रांस है ना ये भारत में जब शासन कर रहे थे तो आपस में एक दूसरे से बढ़िया झगड़ते थे। दोनों को भारत पर राज करना था। दोनों ने एक दूसरे को काफी टक्करें दी। कार्नेटिक
वॉर इनके बीच में लड़े गए। लेकिन इन्होंने जब जर्मनी के खिलाफ या ऑटोमन के खिलाफ लड़ना तय किया तो ये डिसाइड किया कि देखो हमने वैसे दुनिया पर खूब राज किया है। बढ़िया पैसा कमाया है। लेकिन अब जब दोनों साथ लड़ने चल रहे हैं तो हम रिजल्ट जो होंगे उन रिजल्ट की कल्पना पहले ही कर लेते हैं। कैसे? पहले ही तय किया गया विश्व युद्ध के दौरान तय किया गया कि हम जब ऑटोमन एंपायर पर हमला करके जीतेंगे तो उस समय कौन सा देश कौन अपने पास रखेगा यानी कि विजेताओं ने पहले ही ट्रॉफी डिस्ट्रीब्यूशन कर ली थी कि जब मैं जीतूंगा तो मेरा देश वो होगा मेरा देश यह होगा। इस तरह से इन साम्राज्यवादी देशों ने ऑटोमन एंपायर को अपने ही नजर में बांट लिया था। इसी एग्रीमेंट का नाम साई पिकॉक एग्रीमेंट था। ये जो साई पिकॉट एग्रीमेंट है असल में ये ब्रिटेन के एक डिप्लोमेट थे जिनका नाम मार्क स था और फ्रांसीसी डिप्लोमेट थे जिनका नाम जॉर्ज पिकॉट था इनके बीच हुआ और इसमें यह तय हुआ कि जब हम युद्ध जीतेंगे उस समय हम अरब देशों को बांट देंगे और उन अरब देशों में एंटोलिया जिसे तुर्की के नाम से आप जानते हैं जिसका एक हिस्सा तुर्की में है उसी में सीरिया और लेबनान है

मेडिटेरेनियन ओशियन के बॉर्डर

ऑटोमन एंपायर का एक हिस्सा एंटोलिया उसका सीरिया, लेबनान और तुर्किया वाला हिस्सा फ्रांस को दे दिया जाएगा। मिडिल ईस्ट का जो दक्षिण हिस्सा है जो नीचे की तरफ वाला हिस्सा है उसमें इराक और सऊदी अरब हैं वो ब्रिटेन को दे दिया जाएगा और जो फिलिस्तीन नामक जगह है इसे इंटरनेशनल एडमिनिस्ट्रेशन में छोड़ दिया जाएगा। मतलब इस क्षेत्र को हम अंतरराष्ट्रीय रूप से शासन करेंगे। किसी का नहीं होगा क्योंकि यह मेडिटेरेनियन ओशियन के बॉर्डर पर है। इसके अलावा बचे हुए इलाके रूस और इटली को दे दिए जाएंगे। मतलब मिडिल ईस्ट का पहले ही बंटवारा करदिया गया। कुछ इस प्रकार से क्या तय हुआ कि ये जो आज का तुर्की वाला जो हिस्सा आप देखते हैं

असल में ये ये वाला हिस्सा है इस तुर्की के अंदर दक्षिण की तरफ का हिस्सा ये वाला इसमें डायरेक्ट फ्रेंच कंट्रोल ऐसे ही सीरिया में डायरेक्ट फ्रेंच कंट्रोल थोड़ा बहुत कोऑर्डिनेटेड कंट्रोल लेबनान के अंदर रहेगा फ्रांस का ऐसे ही ब्रिटिश इन्फ्लुएंस सऊदी अरब के अंदर रहेगा ऐसे ही ब्रिटिश इन्फ्लुएंस ये जॉर्डन वाला जो एरिया है यहां रहेगा और सऊदी ये जो फिलिस्ती ये जो फिलिस्तीन वाला जो हिस्सा है ये इंटरनेशनलली ट्रीट किया जाएगा।
पर डायरेक्ट ब्रिटिश कंट्रोल रहेगा। इस प्रकार से इस क्षेत्र को बांट दिया गया और कहा बाकी देशों को अपनी मर्जी से रूस और इटली के बीच बांट दिया जाएगा। हमें बस इतना ही मतलब है। अब आप पूछेंगे सर यह क्या था? भाई विजेताओं ने अपने लिए पहले ही ट्रॉफी डिसाइड की हुई थी। यही उनका मोटिवेशन था। ये पहले पूरा साम्राज्य जो आप देख रहे हैं ये ऑटोमन के अधीन हुआ करता था। तय हो गया कि जीतेंगे तब ऐसे बांट लेंगे। डिसाइड हुआ किस-किस तरह से कौन से कौन से क्षेत्र किसके पास चले जाएंगे जो मैंने आपको अभी मैप के माध्यम से दिखाए।

निसकर्ष

उन्हें लगने लगेगा कि यार यह तो गड़बड़ हो गई है। मतलब ये तो कुछ और निकल कर आ गया है। ऐसे में उस समय पर ईरान के अंदर शाह रजा पहलवी के खिलाफ एक मोमेंटम बनना शुरू हुआ। उस मोमेंटम को अमेरिका ने शुरुआत में लाइटली लिया। इजराइल ने कहा सब कुछ ठीक ही चल रहा है। और उस समय रोहिल्ला खुमेनी नाम का एक व्यक्ति एक लीडर के रूप में निकल कर आया। रूहेल्ला खुमैनी के साथ अयातुल्ला खैमनेई भी था जो आज का सुप्रीम लीडर है। तो ईरान के दो नेता हैं रूहेल्ला खुमैनी और अयातुल्ला खैमनेई। ये दोनों ही सीनियर और जूनियर फेलो मित्र राज मित्र कहिए

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