हिस्टीरिया से लेकर तंबाकू की लत तक: Healing the Mind and Body

Healing the Mind and Body -मनुष्य का शरीर केवल मांस और हड्डियों का ढांचा नहीं है, बल्कि यह एक जटिल प्रणाली है जिसमें मन, भावनाएँ और आदतें गहराई से जुड़ी होती हैं। आज की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में मानसिक तनाव, गलत खान-पान और आदतों की गुलामी ने न केवल शरीर को बीमार बनाया है, बल्कि मन को भी अशांत कर दिया है। चाहे बात हो हिस्टीरिया जैसे मानसिक विकार की, बार-बार होने वाले बुखार की, या फिर तंबाकू जैसी नशे की लत की—इन सभी समस्याओं का समाधान आयुर्वेद में शांति और संतुलन के रूप में छुपा हुआ है। सदियों पुरानी इस भारतीय चिकित्सा प्रणाली में ऐसी जड़ी-बूटियाँ, घरेलू नुस्खे और जीवनशैली के सुझाव मिलते हैं जो बिना किसी दुष्प्रभाव के शरीर और मन दोनों को आरोग्य प्रदान करते हैं।

हिस्टीरिया : मनोरोग का प्रकोप:

 
सर्वप्रथम एरंड तेल में भुनी हुई छोटी काली हरड़ का चूर्ण ५ ग्राम प्रतिदिन लगातार दे कर उसका उदर शोधन तथा वायु का शमन करें। सरसों, हींग, बालवच, करजबीज, देवदाख मंजीज, त्रिफला, श्वेत अपराजिता मालकंगुनी, दालचीनी, त्रिकटु, प्रियंगु शिरीष के बीज, हल्दी और दारु हल्दी को बराबर-बराबर ले कर, गाय या बकरी के मूत्र में पीस कर, गोलियां बना कर, छाया में सुखा लें। इसका उपयोग पीने, खाने, या लेप में किया जाता है। इसके सेवन से हिस्टीरिया रोग शांत होता है।
लहसुन को छील कर, चार गुना पानी और चार गुना दूध में मिला कर, धीमी आग पर पकाएं। आधा दूध रह जाने पर छान कर रोगी को थोड़ा-थोड़ा पिलाते रहें।

ब्रह्मी, जटामांसी शंखपुष्पी, असगंध और बच को समान मात्रा में पीस कर, चूर्ण बना कर, एक छोटा चम्मच दिन में दो बार दूध के साथ सेवन करें। इसके साथ ही सारिस्वतारिष्ट दो चम्मच, दिन में दो बार, पानी मिला कर सेवन करें।
ब्राह्मी वटी और अमर सुंदरी वटी की एक-एक गोली मिला कर सुबह तथा रात में सोते समय दूध के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। जो रोगी बालवच चूर्ण को शहद मिला कर लगातार सवा माह तक खाएं और भोजन में केवल दूध एवं शाश का सेवन करे, उसका हिस्टीरिया शांत हो जाता है।
अगर रोगी कुंवारी लड़की है, तो उसकी जल्द शादी करवा देनी चाहिए। रोग अपने आप दूर हो जाएगा।

शतावरी वैसे तो स्त्री-पुरुष दोनों के लिए ही उपयोगी

शतावरी वैसे तो स्त्री-पुरुष दोनों के लिए ही उपयोगी व लाभप्रद गुणों से युक्त जड़ी है, फिर भी यह स्त्रियों के लिए विशेष रूप से गुणकारी एवं उपयोगी है।

गुण : यह भारी, शीतल, कड़वी, स्वादिष्ट, रसायनयुक्त, मधुर रसयुक्त, बुद्धिवर्द्धक, अग्निवर्द्धक, पौष्टिक, स्निग्ध, नेत्रों के लिए हितकारी, गुल्म व अतिसार नाशक, स्तनों में दूध बढ़ाने वाली, बलवर्द्धक, वात-पित्त, शोथ और रक्त विकार को नष्ट करने वाली है। यह छोटी और बड़ी दो प्रकार की होती है।

विभिन्न भाषाओं में नाम : संस्कृत- शतावरी। हिन्दी- शतावर। मराठी- शतावरी। गुजराती- सेमुखा। बंगाली- शतमूली। तेलुगू- एट्टुमट्टी टेंडा। तमिल- सडावरी। कन्नड़- माज्जिगे गड्डे। फारसी- शकाकुल। इंग्लिश- एरेस मोसस। लैटिन- एस्पेरेगस रेसिमोसस।

परिचय : यह लता जाति का काँटेदार पौधा होता है जो जड़ से ही अनेक शाखाओं में फैला हुआ होता है। इसके पत्ते छोटे और सोया (सुआ) जैसे होते हैं। फूल छोटे और सफेद रंग के होते हैं। इसकी शाखाएँ तिकोनी, चिकनी और रेखांकित होती हैं।

उपयोग : इसका उपयोग विभिन्न नुस्खों में व्याधियों को नष्ट कर शरीर को पुष्ट और सुडौल बनाने के लिए किया जाता है।

गर्भकाल में : गर्भवती स्त्री के लिए नवमास चिकित्सा का विवरण बताया है। शतावरी के चूर्ण का उपयोग दूसरे, छठे और सातवें मास में दूध के साथ करने और नवम मास में शतावरी साधित तेल का एनीमा लेने तथा इसमें भिगोए हुए रूई के फाहे को सोते समय योनि में रखने के बारे में बताया गया है। इससे योनि-प्रदेश लचीला, पुष्ट और स्निग्ध रहता है, जिससे प्रसव के समय प्रसूता को अधिक प्रसव पीड़ा नहीं होती।

प्रदर रोग : प्रतिदिन सुबह-शाम शतावरी चूर्ण 5 ग्राम से 10 ग्राम की मात्रा में थोड़े से शुद्ध घी में मिलाकर चाटने व कुनकुना गर्म मीठा दूध पीने से प्रदर रोग से जल्दी से छुटकारा मिलता है।

बुखार:

 
बदलते मौसम में बुखार की चपेट में आना एक आम बात है। कभी वायरल फीवर के नाम पर तो कभी मलेरिया जैसे नामों से यह सभी को अपनी चपेट में ले लेता है। फिर बड़ा आदमी हो या कोई बच्चा इस बीमारी की चपेट में आकर कई परेशानियों से घिर जाते हैं। कई बुखार तो ऐसे हैं जो बहुत दिनों तक आदमी को अपनी चपेट में रखकर उसे पूरी तरह से कमजोर बना देता है। पर घबराइए नहीं सभी तरह के बुखार की एक अचूक दवा है भुना नमक। इसके प्रयोग किसी भी तरह के बुखार को उतार देता है।

भुना नमक बनाने की विधि- खाने मे इस्तेमाल आने वाला सादा नमक लेकर उसे तवे पर डालकर धीमी आंच पर सेकें। जब इसका कलर कॉफी जैसा काला भूरा हो जाए तो उतार कर ठण्डा करें। ठण्डा हो जाने पर एक शीशी में भरकर रखें।जब आपको ये महसूस होने लगे की आपको बुखार आ सकता है तो बुखार आने से पहले एक चाय का चम्मच एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर ले लें। जब आपका बुखार उतर जाए तो एक चम्मच नमक एक बार फिर से लें। ऐसा करने से आपको बुखार कभी पलट कर नहीं आएगा।

विशेष :-

– हाई ब्लडप्रेशर के रोगियों को यह विधि नहीं अपनानी चाहिए।


-यह प्रयोग एक दम खाली पेट करना चाहिए इसके बाद कुछ खाना नहीं चाहिए और ध्यान रखें कि इस दौरान रोगी  को ठण्ड न लगे।


– अगर रोगी को प्यास ज्यादा लगे तो उसे पानी को गर्म कर उसे ठण्डा करके दें।


– इस नुस्खे को अजमाने के बाद रोगी को करीब 48 घंटे तक कुछ खाने को न दें। और उसके बाद उसे दूध चाय या हल्का दलिया बनाकर खिलाऐं।

सादा बुखार

 सादे बुखार में उपवास अत्यधिक लाभदायक है। उपवास के बाद पहले थोड़े दिन मूँग लें फिर सामान्य खुराक शुरु करें। ऋषि चरक ने लिखा है कि बुखार में दूध पीना सर्प के विष के समान है अतः दूध का सेवन न करें।

पहला प्रयोगः सोंठ, तुलसी, गुड़ एवं काली मिर्च का 50 मि.ली काढ़ा बनाकर उसमें आधा या 1 नींबू निचोड़कर पीने से सादा बुखार मिटता है।

दूसरा प्रयोगः शरीर में हल्का बुखार रहने पर, थर्मामीटर द्वारा बुखार न बताने पर थकान, अरुचि एवं आलस रहने पर संशमनी की दो-दो गोली सुबह और रात्रि में लें। 7-8 कड़वे नीम के पत्ते तथा 10-12 तुलसी के पत्ते खाने से अथवा पुदीना एवं तुलसी के पत्तों के एक तोला रस में 3 ग्राम शक्कर डालकर पीने से हल्के बुखार में खूब लाभ होता है।

तीसरा प्रयोगः कटुकी, चिरायता एवं इन्द्रजौ प्रत्येक की 2 से 5 ग्राम को 100 से 400 मि.ली. पानी में उबालकर 10 से 50 मि.ली. कर दें। यह काढ़ा बुखार की रामबाण दवा है।

चौथा प्रयोगः बुखार में करेले की सब्जी लाभकारी है।

पाँचवाँ प्रयोगः मौठ या मौठ की दाल का सूप बनाकर पीने से बुखार मिटता है। उस सूप में हरी धनिया तथा मिश्री डालने से मुँह अथवा मल द्वारा निकलता खून बन्द हो जाता है।

तंबाकू की लत:

 
तंबाकू खाने की आदत छुड़ाने में मनोवैज्ञानिक सलाह के अलावा निम्नलिखित घरेलू नुस्खे भी अपनाए जा सकते हैं – 

बारीक सौंफ के साथ मिश्री के दाने मिलाकर धीरे-धीरे चूसें, नरम हो जाने पर चबाकर खा जाएं।
अजवाइन साफ कर नींबू के रस व काले नमक में दो दिन तक भींगने दें। इसे छांव में सुखाकर रख लें। इसे मुंह में रखकर चूसते रहें। 
छोटी हरड़ को नींबू के रस व सेंधा नमक (पहाड़ी नमक) के घोल में दो दिन तक फूलने दें। इसे निकाल कर छांव में सुखाकर शीशी में भर लें और इसे चूसते रहें। नरम हो जाने पर चबाकर खा लें।
तंबाकू सूंघने की आदत छोड़ने के लिए गर्मी के मौसम में केवड़ा, गुलाब, खस आदि के इत्र का फोहा कान में लगाएं।
सर्दी के मौसम में तंबाकू खाने की इच्छा होने पर हिना की खुशबू का फोहा सूंघें।
खाने की आदत को धीरे-धीरे छोड़ें। एकदम बंद न करें, क्योंकि रक्त में निकोटिन के स्तर को क्रमशः ही कम किया जाना चाहिए।

 

निष्कर्ष

इस लेख का उद्देश्य पारंपरिक आयुर्वेदिक ज्ञान और घरेलू उपचारों के माध्यम से मानसिक, शारीरिक और व्यसन संबंधी समस्याओं जैसे हिस्टीरिया, बुखार और तंबाकू की लत के सरल, सुलभ व प्राकृतिक समाधान प्रस्तुत करना है। यह लेख आधुनिक जीवनशैली की चुनौतियों से जूझते लोगों को एक वैकल्पिक और समग्र चिकित्सा पद्धति की ओर मार्गदर्शन प्रदान करता है।

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